शिक्षा ज्ञान और ज्योतिष

*शिक्षा, ज्ञान और ज्योतिष विज्ञान*

                 - आचार्य आरती

शिक्षा जीवन का आधार है। जिसके बिना मनुष्य अधूरा है। किसी भी पद प्राप्ति के लिये उपयुक्त योग्यता आवश्यक है। मनुष्य का विकास शिक्षा के बिना असम्भव है। उच्च शिक्षा और अच्छी तकनीकी ज्ञान के कारण ही आज हम चाँद पर पहुँच पाये है। आज की भावी युवा पीढ़ी अपना शैक्षिक कैरियर जानने के लिए ज्योतिष के सम्पर्क में आ रहे हैं। ज्योतिष के अनुसार जन्मकुण्डली का पंचम स्थान विद्या, बुद्धि और स्मरण शक्ति का होता है। जिस पर शुभ ग्रहों की दृष्टि के साथ पंचमेश का भी शुभ अवस्था में होना जातक को विद्या और बुद्धि से परिपूर्ण करता है। बुध ग्रह बुद्धि और विद्या का कारक ग्रह है इसलिए कुण्डली में बुध का अवलोकन करना बहुत जरूरी है। बुध के कमजोर होने या पाप ग्रहों के प्रभाव में होने पर जातक की बुद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, जिससे शिक्षा में बाधा आ सकती है।

चन्द्रमा मन का कारक है, इसलिए उत्तम मन के लिए चन्द्रमा का बलवान होना अति आवश्यक है। एक विद्यार्थी को सफल होने के लिए माँ सरस्वती की कृपा होना जरूरी है। माँ सरस्वती विद्या, ज्ञान, विज्ञान, कला, तर्कशक्ति एवं वाणी की दात्री हैं। वसंत पंचमी इनका विशेष दिन माना जाता है। माता-पिता एवं शिक्षकों का कर्तव्य है कि वे अपने बच्चों छात्रों एवं जातकों को यह अहसास कराए कि वे भविष्य के कर्णधार हैं और विद्या में ही मनुष्य का श्रेष्ठ रूप और छिपा हुआ धन है। पाश्चात्य सभ्यता की ओर भटकने वाले बच्चों को समय समय पर आगाह करना भी जरूरी है। विद्या एवं ज्ञान से ही महान बना जा सकता है और विद्या ही जातक को बुद्धि का धनी बनाती है। बुद्धिमान व्यक्ति किसी भी क्षेत्र में परास्त नहीं होता। निरन्तर अभ्यास से ही हम श्रेष्ठ बन सकते हैं।

ज्ञानवान व्यक्ति के लिए श्रेष्ठ वाणी अति आवश्यक है। विश्व का दैनिक कार्य, व्यापार वाणी के व्यवहार पर ही निर्भर है। विश्व की सभी भाषाओं में मधुर वाणी को प्राथमिकता दी गई है। ज्योति का उद्गम भारत देश से ही हुआ है। सनातन धर्म और ज्योतिष एक दूसरे के पूरक हैं। हमारी संस्कृति और ज्ञान विज्ञान को आधार बनाकर ही आज सम्पूर्ण विश्व में वसुधैव कुटुम्बकम् का नारा देकर हमारा देश विश्व गुरु बनने की ओर अग्रसर है। पश्चिमी देश हमारे देश के ज्योतिष का लोहा मानते हैं और हजारों विदेशी छात्र ज्योतिष विद्या ग्रहण करने भारत आते हैं। पूरव हो या पश्चिम, उत्तर हो या दक्षिण हमारे देश में चारों दिशाओं में ज्योति का प्रकाश बिखर रहा है।

प्राचीन भारत में ज्योतिष एक प्रमुख विज्ञान था। महाभारत व रामायण काल के सभी विद्वान ज्योतिष का पूर्ण ज्ञान रखते थे। उस समय शस्त्र विद्या के साथ, ज्योतिष शास्त्र को भी पढ़ाया व सिखाया जाता था। उस काल में ज्योतिष एक विज्ञान के रूप में लिया जाता था। लोगों के हित के लिए इसका उपयोग किया जाता था। लगभग 2000 वर्ष पहले समय समय पर हुए विदेशी आक्रमणों ने इस विद्या को नष्ट करने की बार-बार कोशिश की। लेकिन हमारे पूर्वजों और विद्वान ज्योतिषियों ने कण्ठस्थ कर इसे जीवित रक्खा और अब हमारी ज्योतिष विद्या एक विशाल रूप ले चुकी है। आज इसकी अनेक शाखाएं अलग-अलग रूप से कार्यरत हैं।

समय के साथ -साथ ज्योतिष का आधुनिकीकरण भी होता जा रहा है। वैदिक ज्योतिष के अतिरिक्त आज हस्तरेखा - विज्ञान, टैरो कार्ड रीडिंग, अंक ज्योतिष और अन्य विद्याऐं इस क्षेत्र में आज अपना अलग स्थान बना चुकी हैं। समाज के सभी वर्गों के लोग अपनी-2 रूचि के अनुसार इन विद्याओं के विद्वानों से परामर्श ले रहे हैं। हर जगह अच्छाई के साथ बुराई भी जुड़ी होती है। कुछ अज्ञानी लोग इन विद्याओं को ढकोसला बाजी भी कहते देखे जाते हैं। जो उनकी मानसिक दुर्बलता को दर्शाते हैं। कुछ अज्ञानी इसे केवल धन कमाने का माध्यम बनाने लगे हैं। सभी विज्ञानों की तरह ज्योतिष विज्ञान की भी एक सीमा है। लोग सोचते हैं ज्योतिषी के पास हर समस्या का समाधान होगा। मानो जैसे ज्योतिषी एक विद्वान न होकर कोई जादूगर हो और पलक झपकते ही सब ठीक कर देगा। लोगों को अपनी यह गलत धारणा बदलनी होगी। ज्योतिष एक विज्ञान है जिसकी पूजा की जानी चाहिए और ज्योतिषी का उचित सम्मान।