साढ़े साती

चंद्रमा से केंद्र में शनि का गोचर :एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण :

शनि कारक है सुख - दुःख, उन्नति -अवनति,न्याय, सत्य व असत्य के प्रति आस्था का, शनि कौशल है तो शनि जड़ता भी देता है वहीं जीवन के दर्शन की समझ  भी शनि ही देता है,जब जीवन के यात्रा की बात करते हैं तो शनि एक कुंडली में 30 वर्षों के पश्चात ठीक उसी स्थिति में आता है जिस स्थिति में जन्म स्थान पर होता है।30 वर्ष किसी भी व्यक्ति की प्रतिभा के चरम वर्ष होते हैं। यहां पुनः जीवन दर्शन, आचार -विचारो परिवर्तन देता है।      शनि एक राशि में ढाई साल भ्रमण करते हैं। कुंडली के कुछ भाव में शनि परिवर्तन देता है।ये परिवर्तन मानसिक, शारीरिक, मनोवैज्ञानिक हो सकतें हैं। कहीं कहीं परिवर्तन आध्यात्मिक या स्वयं की खोज भी हो सकतें हैं। क्योंकि शनि जीवन के दर्शन को समझने में अहम भूमिका अदा करता है। शनि दुःख का कारक होने से शारीरिक तथा मानसिक कष्टो को भी देता है।
      परिवर्तन कोई एक दिन की घटना नहीं है।यह एक प्रक्रिया है जो कुंडली के योग तथा दशा से मिलकर चलती है।कुछ बिंदुओं पर गोचर का शनि भ्रमण करता है तब  घटनाओं का साक्षात्कार होता है।
    परिवर्तन का एक चरण  परेशानियां हैं, उसके बाद के चरण में व्यक्ति चिंतन शुरू करता है। चिंतन तब शुरू होता है जब समस्या से अवगत हो जाता है परंतु उसका हल नहीं होता। शनि का गोचर विशेष भावों में इस चिंतन की प्रक्रिया को उत्पन्न करता है।जिसका परिणाम विशेष बिंदुओं पर ( शनि के गोचर से)घटना महसूस होती है या अन्य लोगों द्वारा अवलोकित की जाती है।यह घटना मानसिक शारीरिक कष्ट या फिर स्वयं खोज के साथ सुखद अनुभव तथा दुखद घटनाएं होती है। इसमें अतिरिक्त जिम्मेदारी , स्थान परिवर्तन भी दे सकता है। साढ़े साती में परिवर्तन की स्थिति जोरों पर होती है। 
      अर्थात चंद्रमा से 1, 4,7,10 भावों में तथा जन्मकालिन नक्षत्र से 1,6,10,16,22,26 पर शनि का गोचर विशेष फल देता है। शनि लग्न से भाव विशेष पर गोचर करने से उस भाव को एक्टिवेट कर देता है।तब अच्छे तथा बुरे दोनों फलों की प्राप्ति होती है 
शास्त्रों में इन्हें इस प्रकार बताया-

जन्म नक्षत्र से 
पहले जन्म नक्षत्र पर-  मृत्यु तुल्य कष्ट
छठा नक्षत्र पर- अनचाहे बुरे काम 
दशवे नक्षत्र पर - दुःख,संताप 
सोलहवां संघातिक नक्षत्र - अनचाहे  बुरे काम 
बाइसवां वैनाशिक नक्षत्र - अपनों से झगड़ा 
छब्बीसवां  जाति नक्षत्र - वंश का नाश