लघु पराशरी

लघुपरशारी  -  विंशोत्तरी दशा का उत्कृष्ट अंवेषण 
लघु परशारी भारतीय ज्योतिष का अत्यधिक प्रशंसित ज्योतिष का लघु ग्रंथ है। इसमें ४२ श्लोक हैं। इसके रचनाकार कौन थे पता नही पर इस ग्रंथ का नाम उन्होंने उद्दूदायप्रदीप लिखा जिसका अर्थ है  -  पराशर के नक्षत्र आधारित दशा (विंशोत्तोरि दशा) पर प्रकाश डालने वाला निबंध। 
यहाँ यह समझना आवयशक् है की जिस तरह से लघु पराशरी में विंशोत्तरी दशा के संचालन का प्रस्तुतिकरण किया गया है वैसा अन्य किसी पुस्तक में नहीं है। 
लघु परशारी दशा फल अध्याय :


1. सभी ग्रह अपनी महादशा में अपनी  
    ही अन्तरदशा मैं अपने शुभाशुभ 
    फल नहीं देते हैं अपितु अपने
    संबंधी या सधर्मी ग्रह की अन्तर 
   दशा में वांछित शुभाशुभ फल देंगें। 
क. संबंधी ग्रह - जब दो ग्रह एक दुसरे
    को पूर्ण दृष्टि से देखे, जब दो ग्रह 
    एक ही राशि में हो, एक दुसरे से     
     राशि परिवर्तन हो, अथवा कुंडली
     में कोई एक ग्रह दुसरे ग्रह की 
    राशि में हो और उस राशि का
    स्वामी उसे पूर्ण दृष्टि से देखता हो। 
ख. सधर्मी ग्रह - सधर्मी ग्रह समान
     प्राकृति के होते हैं, योगकारक् का
     सधर्मी योगकारक, शुभ ग्रह का
     शुभ ग्रह, त्रिकोण के स्वामी भी
     आपस में सधर्मी होते हैं, पाप। ग्रह
      का पर ग्रह, नीच का नीच, अस्त
      का अस्त, वक्री का वक्री,
       राजयोग में शामिल होने वाले ग्रह
       भी सधर्मी होते हैं। 
2.  अतः प्रत्येक ग्रहों की दशा में ६
     प्रकार के ग्रहों की अंतरदशा हो
     सकती है। 
१.संबंधी सधर्मी
२. संबंधी विरुधर्मी
३.संबंधी अनुभयधर्मी
४.असंबंधी सधर्मी
५. असंबंधी विरुद्धधर्मी
६. असंबंधी अनुभय धर्मी
    इनमे जो ग्रह संबंधी और सधर्मी
    भी  हैं उनकी दशा में सर्वोत्कृष्ट्
    फल मिलेंगे। जो ग्रह संबंधी और
    अनुभय धर्मी हैं उनके फल कुछ
     न्यून मिलेंगे। जो संबंधी और 
    विरुद्धधर्मी हैं उसमें उससे भी कुछ
    न्यून। तथा असंबंधी सधर्मी में उस
    से भी कुछ कम फल प्राप्त होते हैं। 
    जो असंबंधी विरुद्धधर्मी तथा
    असंबंधी अनुभयधर्मी हैं उनके 
    गुणानुसार उनके फल का वित्तर्क 
    करना चाहिए। 
3.  योग कारक की दशा हो, त्रिकोण
    के स्वामी की अन्तरदशा हो,
    आपस में संबंध हो या ना हो, शुभ
    फलदायी हैं। 
4.  3,6,11 भावों के स्वामी यदि 
    योगकारक से संबंध बनाऐ तो
    अपनी दशा अन्तरदशा में शुभ फल
    देंगे। 
5.  केंद्र के स्वामी अपनी दशा में
    त्रिकोण के स्वामी की अन्तरदशा में
    संबंध होने पर शुभफल संबंध ना
    होने पर अशुभफल देते हैं। 
6.  योगकारक ग्रहों की महादशा और
    मारक ग्रह की अन्तरदशा पहले
    शुभफल फिर पाप फल देती है। 
7.  योगकारक ग्रह की महादशा,
     संबंधी शुभग्रहों की अन्तरदशा में
     शुभ फल, संबंध ना होने पर पाप
     फल प्रदान करती है। 
8.  त्रिकोण के स्वामी के महा दशनाथ
    से संबंध ना होने पर भी कहीं कहीं
    शुभफल देते हैं। 
9.  मारक ग्रह की महादशा में संबंधी
    शुभ ग्रह की अंतर दशा मारक नही
     होती। 
10. मारक ग्रह की महादशा में
     असंबंधी पापी ग्रह की अन्तरदशा
     मारक फल देती है। 
11. शनि तथा शुक्र की आपस की
      दशा विशेष फलदायी है।शुक्र की
      महादशा में शनि की अन्तरदशा
      शुक्र संबंधी फल और शनि की
      महादशा में शुक्र की अन्तरदशा में
      शनि के ही फल विशेष रूप से
      प्राप्त होते हैं।
12. राहु व केतु यदि त्रिकोण में हों,
      विशेष रूप से पंचम व नवम में,
      तो योगकारक ग्रह की दशा में
      उनकी अन्तरदशा शुभ फलदायी
      होती है।